वन्‍दे मातरम् !!!!






Friday, September 11, 2009

आत्‍म विस्‍मरण

पिछले दो-तीन दिनों से समाचार पत्रों में किसी कोने पर छोटे-छोटे से समाचार छप रहे हैं कि पाकिस्‍तान से हिंदू पलायन कर रहे हैं, औरतों और बच्‍चों को अपहरण हो रहा है, उन्‍हें मुस्‍लमान बनाया जा रहा है। ¬पाकिस्‍तान के रहिमयार खान जिले के निवासी राणराम ने पाकिस्‍तान से भारत पहुँचने पर एक पत्रकार को बताया कि उसकी पत्‍नी को बलपूर्वक उठाकर उसके साथ बलात्‍कार किया गया व उसका(पत्‍नी का) धर्मान्‍तरण कर दिया गया। उसकी छोटी सी बच्‍ची को भी तालीबानियों ने अपहरण कर उसका भी नाम बदलकर शबीना रख दिया। आज कल रोज हिंदु पाकिस्‍तान में हो रहे अत्‍याचारों से पीड़ित भारत की ओर पलायन कर रहे हैं, भारत सरकार से वीजा मांग रहे हैं।
यह आजकल या कुछ महीनों से शुरु हुआ किस्‍सा नहीं है, स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही ये सब जारी है। स्‍वतंत्रता प्राप्ति के समय जहॉं काफी लोग भविष्‍य में होने वाली परेशानियों की कल्‍पना कर व उस समय चल रही मारकाट से घबराकर पलायन कर भारत आ गए वहीं बहुत से हिंदु परिवार मातृभूमि से अपने भावनात्‍मक लगाव के चलते वहीं रह गए। वैसे ही जैसे यहॉं बहुत से मुसलमान रुक गए। परन्‍तु जहॉं एक ओर भारत में रह रहे मुसलमान आर्थिक और जनसंख्‍यात्‍मक रूप से वृद्धि करते चले गए वहीं पाकिस्‍तान में रह रहे हिंदु लगातार कम होते चले गए। यह बात किसी से भी छिपी नहीं है। दुनिया में ढ़ोल पीटते मानवाधिकार के ढ़ोंगियों को यह सब कभी दिखाई सुनाई नहीं दिया। हिंदुस्‍तान में भी धर्मनिरपेक्षता का पाखण्‍ड करने वाले राजनीतिज्ञों और तथाकथित प्रगतिवादी बुद्धिजीवियों को भी इन पीड़ित का दुख दिखाई नहीं देता। ये वही धर्मनिरपेक्षतावादी व बुद्धिजीवी हैं, जो एम. एफ. हुसेन और हबीब तनवीर जैसे छद्मभेषी कलाकारों (कला अक्रांताओं) की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता की लड़ाई के लिए सड़कों पर प्रदर्शन करते नजर आते हैं, परन्‍तु इनमें से किसी को भी कभी पाकिस्‍तान में रह रहे हिंदुओं पर हो रहे अत्‍याचारों ने पीड़ित या व्‍यथित नहीं किया। हिंदुस्‍तान में अल्‍पसंख्‍यकों को विशेष अधिकार दिलाने के लिए जमीं-अस्‍मां एक कर देने वाले इन अति मानवतावादियों को कभी पाकिस्‍तान में छूट गए अपने भाई बहनों पर हो रहे अत्‍याचारों ने कभी आहत नहीं किया।
चलिए, पाकिस्‍तान में हो रहे अत्‍याचार नहीं दिख पाते आपको, पाकिस्‍तान के आगे आप लाचार हैं। भारत के अन्‍दर कश्‍मीर में पी‍ढ़ियों से रह रहे हिंदुओं के साथ क्‍या नहीं हुआ सारी दुनिया जानती है।अपने ही पुरखों की धरती और विरासत को छोड़कर मारे मारे फिरते इन परिवारों के दुखों को सुनना है तो दिल्‍ली में कश्‍मीर से निर्वासित् सैकड़ों हिंदु परिवार ऑंखों में ऑंसु लिए मिल जाएगें।
ये ऑंसू, ये दर्द, ये घाव किसी हिंदुस्‍तानी अल्‍पसंख्‍यक चिंतक को क्‍यों नहीं दिखाई देते, ये मुझ अल्‍प बुद्धि को कोई समझा दे तो सारे जीवन उस महान आत्‍मा की चरण वंदना करूँ।
आज हिंदुओं और भारतीय संस्‍कृति पर गहरे से गहरा घाव कर इनाम लूटने की होड़ लगी है।इस होड़ में बेशर्मी की हदों को पार करना रोज का खेल है। अरुन्‍धती राय को कश्‍मीर में हिंदुओं पर हुए अत्‍याचार नहीं दिखाई देते पर भारतीय सेना को कटघरे में रखने में सेकण्‍ड की भी देर नहीं लगातीं। कश्‍मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों की खुलेआम तरफदारी करती हैं, भारत के प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में उनके भारत विरोधी लेख छपते हैं और सरकार सोती है किसी पर कोई कार्यवाही नहीं होती।
कहने की जरूरत नहीं कि इस तरह के जितने भी तथाकथित बुद्धिजीवी आए दिन अपनी प्रतिभा प्र‍दर्शित करते रहते हैं यह सब किसी न किसी विदेशी षडयंत्र का बिके हुए हिस्‍से हैं। पर यह इतने खुले आम इतनी आसानी से संचालित है कि लगता है कि कोई चरागाह है जहॉं कोई भी धास चर सकता है। आज लोग रुपयों की चाह में, पुरुस्‍कार पाने की होड़ में अपने ही देश को, धर्म को बेचने में लगे हुए हैं।
विचारणीय तथ्‍य यह है कि जिस धर्म ने, जिस देश ने दुनिया को गीता जैसा ग्रन्‍थ दिया उसी के मानने वाले आज इतनी दयनीय, शोचनीय अवस्‍था में हैं। जिस गीता को सुनकर अर्जुन ने अपने पौरुष का इतिहास गढ़ दिया, उसी ग्रन्‍थ की पूजा करने वाले आज कीड़े मकोड़ों से ज्‍यादा घृणित जीवन जी रहे हैं। इससे ज्‍यादा उपहास जनक और लज्‍जाजनक कुछ नहीं हो सकता।
इस सबके मूल में दो ही कारण नजर आते हैं, एक भौतिकवाद की ओर हमारा ज्‍यादा झुकाव होना और दूसरा अपनी ही जड़ों से दूर होना है। आज आतंकवाद जैसी समस्‍या का समाधान हम गांधी वाद में ढ़ूंढ़ते हैं, इससे बड़ा जोक मुझे नजर नहीं आता। यह किन कपोल कल्‍पनाओं और मुगालतों में जीते हैं हम! आतंकवाद और इस तरह के जितने भी संक्रमण हैं इनका एक ही समाधान नजर आता है और वह है कृष्‍ण । कृष्‍णा का जीवन दर्शन ही मात्र इन सारी समस्‍याओं का समाधान है। अगर हम सूक्ष्‍मता से कृष्‍ण पर विचार करें तो पाएंगे कि जहॉं एक ओर सर्वशक्तिमान थे पर अपने धर्म, राज्‍य और राजा के सेवक की तरह अपनी सेवाऍं देते रहे। उन्‍होंने अपनी शक्ति, सामर्थ्‍य का एक मात्र उपयोग धर्म और न्‍याय की स्‍थापना और सशक्तिकरण के लिए किया। सारे वैभव के स्‍वामी होने के बाद भी वह वैराग्‍य से पूर्ण थे, निष्‍काम कर्म के प्रणेता और पालनकर्ता थे। अधर्मियों, अत्‍याचारियों और उत्‍पातियों के विनाश के लिए उनमें साम, दाम, दण्‍ड और भेद की नीतियों के चुनाव में तनिक भी संकोच नजर नहीं आता और साथ में मानवता की लिए अगाध प्रेम भी और सेवा भाव भी नजर आता है इन सारे सूत्रों को का पालन ही न सिर्फ हमारे धर्म और राष्‍ को पुनर्स्‍थपित कर सकता है वरन् संपूर्ण मानवता को दिशा दे सकता है।
परन्‍तु विडम्‍बना देखिए कि हम अपनी बहुमूल्‍य निधि को भूलकर भीख मांगते फिर रहे हैं। हम अपने अंदर के प्रकाश को भूलकर अंधेरे में भटक रहे हैं। जिस तरह से एक झूठ कई झूठों को जन्‍म देता है, वैसे ही आजादी और आजादी दिलाने वालों के भ्रम में पड़कर हम और हमारा राष्‍ भ्रमित होता चला जा रहा है। वक्‍त है हम हमारे आत्‍म और मानसिक मंथनों से अपनी वास्‍तविक उन्‍नति का अमृत पाने की कोशिश करें क्‍योंकि अगर हम अब भी न संभले तो कब संभलेंगे।

अमित प्रजापति
Mo. +919981538208
190, चित्रांश भवन, राजीव नगर, विदिशा (म प्र) पिन- 464001
Email- amitpraj@in.com
amitprajp@gmail.com

4 comments:

  1. ईनकी आँखे तभी खुलेगी जब भारत में इनके साथ एसा होगा। पर शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। आने वाली पिढियाँ ईन जयचँद्रों को कोसेगी।

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  2. जागरुक करता आलेख. आभार.

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  3. आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

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  4. झूठ कई झूठों को जन्‍म देता है जागरुक करता आलेख बधाई.

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