वन्‍दे मातरम् !!!!






Tuesday, September 8, 2009

गहरी नींद

हम एक सामान्‍य परिवार की कल्‍पना करें जिसमें वृद्ध माता पिता, उनका 35-36 वर्ष का पुत्र उसकी पत्‍नी और उसके बच्‍चे जो स्‍कूल में पढ़ रहे हों । अब इस परिथिति में अपेक्षित है कि वृद्ध माता पिता भजन पूजन करेंगे और घर के छोटे मोटे काम में हाथ बटाएगें, पुत्रवधु घर के संचालन और प्रबंधन का काम करेगी और बच्‍चे भी अपने अध्‍ययन में व्‍यस्‍त हैं। ऐसेमें कल्‍पना करें कि परिवार का मुख्‍य संचालन कर्ता अपनी जिम्‍मेदारियों को सुचारू रूप से न निभा सके और अपनी कमजोरियों व चल रही परेशानियों को‍ छिपाते हुए घर वालों से झूठ बोले तो एक समय बाद परिवार की क्‍या स्थिति होगी यह कल्‍पना करना सहज है।
अब हम ऐसा समझें कि ऊपर जिस परिवार का वर्णन है वह हमारा देश है वृद्ध माता पिता और पुत्र वधु समाज हैं परिवार का संचालन कर्ता हमारा शासक प्रशासक व राजनेंतिक नतृत्‍व है व बच्‍चे देश के भविष्‍य हैं तो क्‍या हम ये महसूस नहीं करते हैं कि हमारे देश के नेतृत्‍वकर्ता आपनी जिम्‍मेदारियों को न सिर्फ निभा सकने में अक्षम् हैं। अगर हम इसे नजर अंदाज करते हैं तो क्‍या ये ऐसा नहीं है कि हम अपनी कमजोरियों व अकर्मण्‍यता से होने वाले परिणामों को अनदेखा कर शुतुर्मुग की तरह रेत में सिर घुसाकर भ्रम पाल रहे हैं कि जैसे नहीं कोई तूफान नहीं है।
हमारे राजनेतिक नेतृत्‍व की अकर्मण्‍यता व कमजोरियों के चलते ही कश्‍मीर के बड़े भू-भाग पर पाकिस्‍तान कब्‍जा किए हुए है, चीन हजारों कि.मी.भूमिको हथिया चुका है और बात सिर्फ यहीं खत्‍म नहीं हो जाती स्थिति बिगड़ते ¬– बिगड़ते इतनी भयावह हो गई है कि देश के दुश्‍मन खुले आम ढंके की चोट पर देश को तीस तुकड़ों मे तोड़ने की बात करते हैं हम लाचारों की तरह चुपचाप सुनते हैं। हमारी विदेश नीति के निकम्‍मेपन की दास्‍तान इतनी बड़ी है कि चीन और अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्‍ तो आए दिन हमारा उपहास उड़ाते ही हैं, अब हम पाकिस्‍तान, नेपाल और बंगलादेश जैसे टटपुंजियों से भी कुछ कह सकने की स्थिति में नहीं हैं। हमारी मातृभूमि की अस्‍मिता को ये भिखमंगे देश चुनोति दे रहे हैं। माओवादियों ने भारत नेपाल सीमा पर सैकड़ों ऐकड़ भूमि पर कब्‍जा कर रखा है और विश्‍व में सर्वश्रेष्‍ठ समझी जाने वाली हमारी सेना हमारे भोंदू राजनैतिक आकाओं की अकर्मण्‍यता के चलते हाथ पर हाथ रखे विवशा बैठी है। इन्‍हीं राजनेतिक आकाओं की स्‍वार्थी बलिवेदी पर कश्‍मीर में हमारी सेना के जवान पानी की तरह अपनी जान गवां रहे हैं, और हम जो देश की आम जनता हैं, इस सबसे बेफिक़र अपनी दुनिया में अपने सपनों में मस्‍त हैं। कभी कभी जब कुछ घटनाओं के झटकों से हमारी नींद टूटने को होती है तो हमारे कुशल शासक प्रशासक हमें झूठे वादों आस्‍वासनों और परिलोक की कहानियों की लोरी गाकर सुना देते हैं और हम फिर मस्‍त झपकी में खो जाते हैं।

वा‍स्‍तविकता में हमारी ये नींद नयी नहीं है। एक समय जब हम विश्‍व सिरमोर थे पर उस समय भी हमारी सम्‍पन्‍नता और सामर्थ्‍य शेष विश्‍व के लिए डरावनी थी बल्कि शरणागत वत्‍सल भी थी। जब विश्‍व को हमारी यह सफलता खटकने लगी तो षडयंत्रों का खेल बढ़ गया, हम इन षडयंत्रों मे फंसते चले गये। लार्ड मेकॉले का ब्रिटिश महारानी को लिखा चर्चित पत्र सबको याद होगा जिसमें भारतीयों की चारित्रिक सुदृढ़ता की प्रशंसा की गई थी और कहा गया कि यदि इन्‍हें अपना गुलाम बनाना है तो इनका चारित्र हनन करना होगा। इसके बाद से जो नीतियॉं भारत में लागू की गईं उनका एकमात्र उद्देश्‍य चारित्रिक आर्थिक हर दृष्टि से भारतीयों को दीन हीन बनाना था।तब जो देश में शिक्षा नीति लागू की गई (जो तक अनवरत् बल्कि स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात् वह और भी तेजी से विकसित हुई) उसने हम भारतीयों की सोच को लकवा पीड़ित कर दिया। इस शिक्षा नीति ने हमें इस सोच तक सीमित कर दिया कि पढ़ो, डिग्री लो, नोकरी करो, शादी करो, घर बनाओ, गाड़ी खरीदो, सुख सुविधाओं को जुटाने में जिंदगी बिताओ, इससे ज्‍यादा हम सोचने के नहीं बचे। आज इसी गुलामी जन्‍य शिक्षा में पारंगत लोग देशा चला रहे हैं।हम कितने बड़े झूठ और भ्रम के साथ खड़े हैं इसका उदाहरण है कि देश में सम्‍मानित समझे जाने वाले C.A. और M.B.A. पढ़ा हमारा युवा वर्ग इस झूठ से सम्‍मो‍हित है कि देश की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार स्‍तंभ शेयर बाजार है । आज इसी मुगालते के चलते देश की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार खेती, सरकारी नीतियों में उपेक्षा का शिकार है, क्‍या अपने पैर पर कुल्‍हाड़ी मारने जैसा नहीं है।

आज समाज के ज्‍यादातर लोगों की सोच व्‍यक्तिगत् स्‍वार्थों पर आधारित है, राष्‍वादिता जैसे विचार को पिछड़ेपन की निशानी समझा जाता है। सामाजिक और सामाजिक सरोकारों जैसे किसी भी विषय पर सोचने तक का समय निकालना मूर्खतापूर्ण कृत्‍य समझा जाता है। अब इससे ज्‍यादा हमारा और क्‍या चारित्रिक पतन होगा ? क्‍या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि अंग्रज अपनी चालों में कामयाब रहे ? हम अब भी यह सब समझने की स्थिति में नहीं हैं। क्‍या यह ऐसा नहीं है कि किसी जेल के केदी को ड्रग एडिक्‍ट बनाकर जेल से छोड़ दिया जाए और वह कैदी यह सोच कर प्रसन्‍न रहे कि मैं स्‍वतंत्र हो गया हूँ ।
ऐसी स्थिति में अगर आज पाकिस्‍तान, नेपाल जैसे बंगलादेश जैसे भिखमंगे देश भारत को आये दिन तमाचे मारने का दुस्‍साहस करते हैं तो कौन सी बड़ी बात है। जब हम इन छोटे-छोटे सर्दी जुखामों का सामना नहीं कर सकते तो चीन और अमेरिका जैसी स्‍वाइन फ्‍लू और एड्स जैसी महामारियों का कैसे सामना करेंगे। इसके लिए हमें हर स्‍तर पर रोग प्रतिरोधक तंत्र मजबूत करना होगा। इसकी शुरूआत हमें अपने आप से करनी होगी, इसके लिए हमें मानसिक और आत्मिक रूप से जाग्रत होना होगा, बेहोशी तोड़नी होगी। क्‍योंकि जो अपनी मदद नहीं कर सकता उसकी तो देवता भी मदद नहीं कर सकते।

अमित प्रजापति
Mo. +919981538208
190, चित्रांश भवन, राजीव नगर, विदिशा (म प्र) पिन- 464001
Email- amitpraj@in.com
amitprajp@gmail.com

5 comments:

  1. जो अपनी मदद नहीं कर सकता उसकी तो देवता भी मदद नहीं कर सकते।

    सबसे बडा सत्‍य यही है .. जिसे समझना होगा !!

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  2. बिल्कुल सही कहा!

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  3. सभी अपनी जिम्मेवारियों से पल्ला छुड़ाते हैं

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  4. बिल्कुल सही सबसे बडा सत्‍य कहा!जिम्मेवारियों से सभी पल्ला छुड़ाते हैं

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  5. मानसिक और आत्मिक रूप से जाग्रत होना होगा, बेहोशी तोड़नी होगी। क्‍योंकि जो अपनी मदद नहीं कर सकता उसकी तो देवता भी मदद नहीं कर सकते।
    ye baat ek dam sahi he,aap ka ye lekh jagaane bala he-amit shrivastava

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