वन्‍दे मातरम् !!!!






Friday, September 11, 2009

आत्‍म विस्‍मरण

पिछले दो-तीन दिनों से समाचार पत्रों में किसी कोने पर छोटे-छोटे से समाचार छप रहे हैं कि पाकिस्‍तान से हिंदू पलायन कर रहे हैं, औरतों और बच्‍चों को अपहरण हो रहा है, उन्‍हें मुस्‍लमान बनाया जा रहा है। ¬पाकिस्‍तान के रहिमयार खान जिले के निवासी राणराम ने पाकिस्‍तान से भारत पहुँचने पर एक पत्रकार को बताया कि उसकी पत्‍नी को बलपूर्वक उठाकर उसके साथ बलात्‍कार किया गया व उसका(पत्‍नी का) धर्मान्‍तरण कर दिया गया। उसकी छोटी सी बच्‍ची को भी तालीबानियों ने अपहरण कर उसका भी नाम बदलकर शबीना रख दिया। आज कल रोज हिंदु पाकिस्‍तान में हो रहे अत्‍याचारों से पीड़ित भारत की ओर पलायन कर रहे हैं, भारत सरकार से वीजा मांग रहे हैं।
यह आजकल या कुछ महीनों से शुरु हुआ किस्‍सा नहीं है, स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही ये सब जारी है। स्‍वतंत्रता प्राप्ति के समय जहॉं काफी लोग भविष्‍य में होने वाली परेशानियों की कल्‍पना कर व उस समय चल रही मारकाट से घबराकर पलायन कर भारत आ गए वहीं बहुत से हिंदु परिवार मातृभूमि से अपने भावनात्‍मक लगाव के चलते वहीं रह गए। वैसे ही जैसे यहॉं बहुत से मुसलमान रुक गए। परन्‍तु जहॉं एक ओर भारत में रह रहे मुसलमान आर्थिक और जनसंख्‍यात्‍मक रूप से वृद्धि करते चले गए वहीं पाकिस्‍तान में रह रहे हिंदु लगातार कम होते चले गए। यह बात किसी से भी छिपी नहीं है। दुनिया में ढ़ोल पीटते मानवाधिकार के ढ़ोंगियों को यह सब कभी दिखाई सुनाई नहीं दिया। हिंदुस्‍तान में भी धर्मनिरपेक्षता का पाखण्‍ड करने वाले राजनीतिज्ञों और तथाकथित प्रगतिवादी बुद्धिजीवियों को भी इन पीड़ित का दुख दिखाई नहीं देता। ये वही धर्मनिरपेक्षतावादी व बुद्धिजीवी हैं, जो एम. एफ. हुसेन और हबीब तनवीर जैसे छद्मभेषी कलाकारों (कला अक्रांताओं) की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता की लड़ाई के लिए सड़कों पर प्रदर्शन करते नजर आते हैं, परन्‍तु इनमें से किसी को भी कभी पाकिस्‍तान में रह रहे हिंदुओं पर हो रहे अत्‍याचारों ने पीड़ित या व्‍यथित नहीं किया। हिंदुस्‍तान में अल्‍पसंख्‍यकों को विशेष अधिकार दिलाने के लिए जमीं-अस्‍मां एक कर देने वाले इन अति मानवतावादियों को कभी पाकिस्‍तान में छूट गए अपने भाई बहनों पर हो रहे अत्‍याचारों ने कभी आहत नहीं किया।
चलिए, पाकिस्‍तान में हो रहे अत्‍याचार नहीं दिख पाते आपको, पाकिस्‍तान के आगे आप लाचार हैं। भारत के अन्‍दर कश्‍मीर में पी‍ढ़ियों से रह रहे हिंदुओं के साथ क्‍या नहीं हुआ सारी दुनिया जानती है।अपने ही पुरखों की धरती और विरासत को छोड़कर मारे मारे फिरते इन परिवारों के दुखों को सुनना है तो दिल्‍ली में कश्‍मीर से निर्वासित् सैकड़ों हिंदु परिवार ऑंखों में ऑंसु लिए मिल जाएगें।
ये ऑंसू, ये दर्द, ये घाव किसी हिंदुस्‍तानी अल्‍पसंख्‍यक चिंतक को क्‍यों नहीं दिखाई देते, ये मुझ अल्‍प बुद्धि को कोई समझा दे तो सारे जीवन उस महान आत्‍मा की चरण वंदना करूँ।
आज हिंदुओं और भारतीय संस्‍कृति पर गहरे से गहरा घाव कर इनाम लूटने की होड़ लगी है।इस होड़ में बेशर्मी की हदों को पार करना रोज का खेल है। अरुन्‍धती राय को कश्‍मीर में हिंदुओं पर हुए अत्‍याचार नहीं दिखाई देते पर भारतीय सेना को कटघरे में रखने में सेकण्‍ड की भी देर नहीं लगातीं। कश्‍मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों की खुलेआम तरफदारी करती हैं, भारत के प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में उनके भारत विरोधी लेख छपते हैं और सरकार सोती है किसी पर कोई कार्यवाही नहीं होती।
कहने की जरूरत नहीं कि इस तरह के जितने भी तथाकथित बुद्धिजीवी आए दिन अपनी प्रतिभा प्र‍दर्शित करते रहते हैं यह सब किसी न किसी विदेशी षडयंत्र का बिके हुए हिस्‍से हैं। पर यह इतने खुले आम इतनी आसानी से संचालित है कि लगता है कि कोई चरागाह है जहॉं कोई भी धास चर सकता है। आज लोग रुपयों की चाह में, पुरुस्‍कार पाने की होड़ में अपने ही देश को, धर्म को बेचने में लगे हुए हैं।
विचारणीय तथ्‍य यह है कि जिस धर्म ने, जिस देश ने दुनिया को गीता जैसा ग्रन्‍थ दिया उसी के मानने वाले आज इतनी दयनीय, शोचनीय अवस्‍था में हैं। जिस गीता को सुनकर अर्जुन ने अपने पौरुष का इतिहास गढ़ दिया, उसी ग्रन्‍थ की पूजा करने वाले आज कीड़े मकोड़ों से ज्‍यादा घृणित जीवन जी रहे हैं। इससे ज्‍यादा उपहास जनक और लज्‍जाजनक कुछ नहीं हो सकता।
इस सबके मूल में दो ही कारण नजर आते हैं, एक भौतिकवाद की ओर हमारा ज्‍यादा झुकाव होना और दूसरा अपनी ही जड़ों से दूर होना है। आज आतंकवाद जैसी समस्‍या का समाधान हम गांधी वाद में ढ़ूंढ़ते हैं, इससे बड़ा जोक मुझे नजर नहीं आता। यह किन कपोल कल्‍पनाओं और मुगालतों में जीते हैं हम! आतंकवाद और इस तरह के जितने भी संक्रमण हैं इनका एक ही समाधान नजर आता है और वह है कृष्‍ण । कृष्‍णा का जीवन दर्शन ही मात्र इन सारी समस्‍याओं का समाधान है। अगर हम सूक्ष्‍मता से कृष्‍ण पर विचार करें तो पाएंगे कि जहॉं एक ओर सर्वशक्तिमान थे पर अपने धर्म, राज्‍य और राजा के सेवक की तरह अपनी सेवाऍं देते रहे। उन्‍होंने अपनी शक्ति, सामर्थ्‍य का एक मात्र उपयोग धर्म और न्‍याय की स्‍थापना और सशक्तिकरण के लिए किया। सारे वैभव के स्‍वामी होने के बाद भी वह वैराग्‍य से पूर्ण थे, निष्‍काम कर्म के प्रणेता और पालनकर्ता थे। अधर्मियों, अत्‍याचारियों और उत्‍पातियों के विनाश के लिए उनमें साम, दाम, दण्‍ड और भेद की नीतियों के चुनाव में तनिक भी संकोच नजर नहीं आता और साथ में मानवता की लिए अगाध प्रेम भी और सेवा भाव भी नजर आता है इन सारे सूत्रों को का पालन ही न सिर्फ हमारे धर्म और राष्‍ को पुनर्स्‍थपित कर सकता है वरन् संपूर्ण मानवता को दिशा दे सकता है।
परन्‍तु विडम्‍बना देखिए कि हम अपनी बहुमूल्‍य निधि को भूलकर भीख मांगते फिर रहे हैं। हम अपने अंदर के प्रकाश को भूलकर अंधेरे में भटक रहे हैं। जिस तरह से एक झूठ कई झूठों को जन्‍म देता है, वैसे ही आजादी और आजादी दिलाने वालों के भ्रम में पड़कर हम और हमारा राष्‍ भ्रमित होता चला जा रहा है। वक्‍त है हम हमारे आत्‍म और मानसिक मंथनों से अपनी वास्‍तविक उन्‍नति का अमृत पाने की कोशिश करें क्‍योंकि अगर हम अब भी न संभले तो कब संभलेंगे।

अमित प्रजापति
Mo. +919981538208
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Tuesday, September 8, 2009

गहरी नींद

हम एक सामान्‍य परिवार की कल्‍पना करें जिसमें वृद्ध माता पिता, उनका 35-36 वर्ष का पुत्र उसकी पत्‍नी और उसके बच्‍चे जो स्‍कूल में पढ़ रहे हों । अब इस परिथिति में अपेक्षित है कि वृद्ध माता पिता भजन पूजन करेंगे और घर के छोटे मोटे काम में हाथ बटाएगें, पुत्रवधु घर के संचालन और प्रबंधन का काम करेगी और बच्‍चे भी अपने अध्‍ययन में व्‍यस्‍त हैं। ऐसेमें कल्‍पना करें कि परिवार का मुख्‍य संचालन कर्ता अपनी जिम्‍मेदारियों को सुचारू रूप से न निभा सके और अपनी कमजोरियों व चल रही परेशानियों को‍ छिपाते हुए घर वालों से झूठ बोले तो एक समय बाद परिवार की क्‍या स्थिति होगी यह कल्‍पना करना सहज है।
अब हम ऐसा समझें कि ऊपर जिस परिवार का वर्णन है वह हमारा देश है वृद्ध माता पिता और पुत्र वधु समाज हैं परिवार का संचालन कर्ता हमारा शासक प्रशासक व राजनेंतिक नतृत्‍व है व बच्‍चे देश के भविष्‍य हैं तो क्‍या हम ये महसूस नहीं करते हैं कि हमारे देश के नेतृत्‍वकर्ता आपनी जिम्‍मेदारियों को न सिर्फ निभा सकने में अक्षम् हैं। अगर हम इसे नजर अंदाज करते हैं तो क्‍या ये ऐसा नहीं है कि हम अपनी कमजोरियों व अकर्मण्‍यता से होने वाले परिणामों को अनदेखा कर शुतुर्मुग की तरह रेत में सिर घुसाकर भ्रम पाल रहे हैं कि जैसे नहीं कोई तूफान नहीं है।
हमारे राजनेतिक नेतृत्‍व की अकर्मण्‍यता व कमजोरियों के चलते ही कश्‍मीर के बड़े भू-भाग पर पाकिस्‍तान कब्‍जा किए हुए है, चीन हजारों कि.मी.भूमिको हथिया चुका है और बात सिर्फ यहीं खत्‍म नहीं हो जाती स्थिति बिगड़ते ¬– बिगड़ते इतनी भयावह हो गई है कि देश के दुश्‍मन खुले आम ढंके की चोट पर देश को तीस तुकड़ों मे तोड़ने की बात करते हैं हम लाचारों की तरह चुपचाप सुनते हैं। हमारी विदेश नीति के निकम्‍मेपन की दास्‍तान इतनी बड़ी है कि चीन और अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्‍ तो आए दिन हमारा उपहास उड़ाते ही हैं, अब हम पाकिस्‍तान, नेपाल और बंगलादेश जैसे टटपुंजियों से भी कुछ कह सकने की स्थिति में नहीं हैं। हमारी मातृभूमि की अस्‍मिता को ये भिखमंगे देश चुनोति दे रहे हैं। माओवादियों ने भारत नेपाल सीमा पर सैकड़ों ऐकड़ भूमि पर कब्‍जा कर रखा है और विश्‍व में सर्वश्रेष्‍ठ समझी जाने वाली हमारी सेना हमारे भोंदू राजनैतिक आकाओं की अकर्मण्‍यता के चलते हाथ पर हाथ रखे विवशा बैठी है। इन्‍हीं राजनेतिक आकाओं की स्‍वार्थी बलिवेदी पर कश्‍मीर में हमारी सेना के जवान पानी की तरह अपनी जान गवां रहे हैं, और हम जो देश की आम जनता हैं, इस सबसे बेफिक़र अपनी दुनिया में अपने सपनों में मस्‍त हैं। कभी कभी जब कुछ घटनाओं के झटकों से हमारी नींद टूटने को होती है तो हमारे कुशल शासक प्रशासक हमें झूठे वादों आस्‍वासनों और परिलोक की कहानियों की लोरी गाकर सुना देते हैं और हम फिर मस्‍त झपकी में खो जाते हैं।

वा‍स्‍तविकता में हमारी ये नींद नयी नहीं है। एक समय जब हम विश्‍व सिरमोर थे पर उस समय भी हमारी सम्‍पन्‍नता और सामर्थ्‍य शेष विश्‍व के लिए डरावनी थी बल्कि शरणागत वत्‍सल भी थी। जब विश्‍व को हमारी यह सफलता खटकने लगी तो षडयंत्रों का खेल बढ़ गया, हम इन षडयंत्रों मे फंसते चले गये। लार्ड मेकॉले का ब्रिटिश महारानी को लिखा चर्चित पत्र सबको याद होगा जिसमें भारतीयों की चारित्रिक सुदृढ़ता की प्रशंसा की गई थी और कहा गया कि यदि इन्‍हें अपना गुलाम बनाना है तो इनका चारित्र हनन करना होगा। इसके बाद से जो नीतियॉं भारत में लागू की गईं उनका एकमात्र उद्देश्‍य चारित्रिक आर्थिक हर दृष्टि से भारतीयों को दीन हीन बनाना था।तब जो देश में शिक्षा नीति लागू की गई (जो तक अनवरत् बल्कि स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात् वह और भी तेजी से विकसित हुई) उसने हम भारतीयों की सोच को लकवा पीड़ित कर दिया। इस शिक्षा नीति ने हमें इस सोच तक सीमित कर दिया कि पढ़ो, डिग्री लो, नोकरी करो, शादी करो, घर बनाओ, गाड़ी खरीदो, सुख सुविधाओं को जुटाने में जिंदगी बिताओ, इससे ज्‍यादा हम सोचने के नहीं बचे। आज इसी गुलामी जन्‍य शिक्षा में पारंगत लोग देशा चला रहे हैं।हम कितने बड़े झूठ और भ्रम के साथ खड़े हैं इसका उदाहरण है कि देश में सम्‍मानित समझे जाने वाले C.A. और M.B.A. पढ़ा हमारा युवा वर्ग इस झूठ से सम्‍मो‍हित है कि देश की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार स्‍तंभ शेयर बाजार है । आज इसी मुगालते के चलते देश की अर्थव्‍यवस्‍था का मुख्‍य आधार खेती, सरकारी नीतियों में उपेक्षा का शिकार है, क्‍या अपने पैर पर कुल्‍हाड़ी मारने जैसा नहीं है।

आज समाज के ज्‍यादातर लोगों की सोच व्‍यक्तिगत् स्‍वार्थों पर आधारित है, राष्‍वादिता जैसे विचार को पिछड़ेपन की निशानी समझा जाता है। सामाजिक और सामाजिक सरोकारों जैसे किसी भी विषय पर सोचने तक का समय निकालना मूर्खतापूर्ण कृत्‍य समझा जाता है। अब इससे ज्‍यादा हमारा और क्‍या चारित्रिक पतन होगा ? क्‍या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि अंग्रज अपनी चालों में कामयाब रहे ? हम अब भी यह सब समझने की स्थिति में नहीं हैं। क्‍या यह ऐसा नहीं है कि किसी जेल के केदी को ड्रग एडिक्‍ट बनाकर जेल से छोड़ दिया जाए और वह कैदी यह सोच कर प्रसन्‍न रहे कि मैं स्‍वतंत्र हो गया हूँ ।
ऐसी स्थिति में अगर आज पाकिस्‍तान, नेपाल जैसे बंगलादेश जैसे भिखमंगे देश भारत को आये दिन तमाचे मारने का दुस्‍साहस करते हैं तो कौन सी बड़ी बात है। जब हम इन छोटे-छोटे सर्दी जुखामों का सामना नहीं कर सकते तो चीन और अमेरिका जैसी स्‍वाइन फ्‍लू और एड्स जैसी महामारियों का कैसे सामना करेंगे। इसके लिए हमें हर स्‍तर पर रोग प्रतिरोधक तंत्र मजबूत करना होगा। इसकी शुरूआत हमें अपने आप से करनी होगी, इसके लिए हमें मानसिक और आत्मिक रूप से जाग्रत होना होगा, बेहोशी तोड़नी होगी। क्‍योंकि जो अपनी मदद नहीं कर सकता उसकी तो देवता भी मदद नहीं कर सकते।

अमित प्रजापति
Mo. +919981538208
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Monday, September 7, 2009

मृत्‍यु सूचक लक्षण

मृत्‍यु निकट आने पर हमारा शरीर कई ऐसे लक्षण प्रकट करने लगता है जिन पर यदि ध्‍यान दिया जाए तो आने वाली मृत्‍यु का आभास किया जा सकता है। जिस व्‍यक्ति की दाहिनी नासिका में एक दिन रात अखण्‍ड रूप से वायु चलती है उसकी आयु तीन वर्ष में समाप्‍त हो जाती है्, और जिसका दक्षिण श्र्वास लगातार दो दिन या तीन दिन तक निरन्‍तर चलता रहता है, उस व्‍यक्ति को इस संसार में मात्र एक वर्ष का ही मेहमान जानना चाहिए। यदि दोनों नासिका छिद्र दस दिन तक निरन्‍तर ऊर्घ्‍व श्र्वास के साथ चलते रहें तो मनुष्‍य तीन दिन तक ही जीवित रहता है। यदि श्र्वासव़ायु नासिका के दोनों छिद्रों को छोड़कर मुख से बहने लगे तो दो दिन के पहले ही उसका परलोकगमन हो जाएगा।
जब सूर्य सप्‍तम् राशि पर हों और चन्‍द्रमा जन्‍म नक्षत्र पर आ गए हों तब यदि दाहिनी नासिका से श्र्वास चलने लगे तो उस समय सूर्य देवता से अधिष्ठित काल प्राप्‍त होता है। जिसके मल मूत्र और वीर्य अथवा मल मूत्र एवं छींक एक साथ ही गिरते हैं, उसकी आयु केवल एक वर्ष और शेष है ऐसा समझना चाहिए। जो व्‍यक्ति स्‍वप्‍न में इन्‍द्रनील मणि के समान रंगवाले नागों के झुण्‍ड को आकाश में इधर उधर फैला हुआ देखता है, वह छ:महीने भी जीवित नहीं रहता। जिसकी मृत्‍यु निकट होती है, वह अरून्‍धती और ध्रुव को भी नहीं देख पाता। जो अकस्‍मात् नीले पीले आदि रंगों को तथा कड़वे, खट्टे आदि रसों को विपरीत रूप में देखने और अनुभव करने लगता है, वह छ: महीने में मृत्‍यु का ग्रास बनता है। वीर्य, नख और नेत्रों का कोना – यह सब यदि नीले या काले रंग के हो जाएं तो मनुष्‍य छठे मास में ही काल के गाल मे समा जाता है। जो मनुष्‍य स्‍वप्‍न में जल, घी और दर्पण आदि में अपने प्रतिबिम्‍ब का मस्‍तक नहीं देखता, वह एक मास तक ही जीवित रह पाता है। बुद्धि भ्रष्‍ट हो जाए, वाणी स्‍पष्‍ट न निकले, रात में इन्‍द्र धनुष का दर्शन हो, दो चन्‍द्रमा और दो सूर्य दिखाई दें तो यह सब मृत्‍यु सूचक चिन्‍ह हैं। हाथ से कान बन्‍द कर लेने पर जब किसी प्रकार की आवाज न सुनाई दे तथा मोटा शरीर थोड़े ही दिनों दुबला पतला और दुबला पतला शरीर मोटा हो जाए तो एक मास में मृत्‍यु हो जाती। जिसे स्‍वप्‍न में भूत, प्रेत, पिशाच, असुर, कौए, कुत्‍ते, गीध, सियार, गधे और सूअर इधर उधर खाते और ले जाते हैं, वह वर्ष के अन्‍त में प्राण त्‍याग कर यमराज का दर्शन करता है। जो स्‍वप्‍न काल में गन्‍ध, पुष्‍प और लाल वस्‍त्रों से अपने शरीर को विभूषित देखता है, वह उस दिन से केवल आठ मास तक जीवित रहता है। जो स्‍वप्‍न में धूल की रा‍शि, विमौट (दीमक का घर) अथवा यूपदण्‍ड पर चढ़ता है वह छठे महीने में मृत्‍यु को प्राप्‍त होता है। जो स्‍वप्‍न में अपने को तेल लगाये, मूड़ मुड़ाए देखता है और गद्हे पर चढ़े दक्षिण दिशा की ओर ले जाए हुए देखता है अथवा अपने पूर्वजों को इस रूप में देखता है उसकी मृत्‍यु छ: महीने में हो जाती है। गोस्‍वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित राम चरित मानस में उपरोक्‍त लक्षण का वर्णन रावण के विषय में पढ़ने को मिलता है।
जो स्‍वप्‍न में लोहे का डंडा और काला वस्‍त्र धारण करने वाले किसी काले रंग के पुरूष को अपने आगे खड़ा देखता है, वह तीन मास से अधिक जीवित नहीं रहता। स्‍वप्‍न में काले रंग की कुमारी कन्‍या जिस पुरूष को अपने बाहुपाश में कस ले वह एक माह में परलोक सिधार जाता है। जो मनुष्‍य स्‍वप्‍न में वानर की सवारी पर चढ़कर पूर्व दिशा की ओर जाता है वह पॉंच दिन में ही संयमनी पुरी को देखता है।
कान के नीचे की मांसल लटक मांसल होते हुए भी एक निश्चित दृढ़ता लिए हुए होती है यदि यह मांसल लटक अपनी दृढ़ता खोकर थुलथुली होकर इधर उधर ढलकने लगे तो भी मृत्‍यु तीन माह के भीतर होने का आभास निश्चित है। मृत्‍यु एक अटल सत्‍य है यह सर्वविदित् है, परन्‍तु मृत्‍यु के भी तीन प्रकार बताए गए हैं- आदिदैविक, आदिभौतिक और आध्‍यात्मिक। आदिदैविक और आदिभौतिक मृत्‍यु योगों को तन्‍त्र और ज्‍योतिषीय उपायों द्वारा टाला जा सकता है परन्‍तु आध्‍यात्मिक मृत्‍यु के साथ किसी भी प्रकार का छेड़ छाड़ संभव नहीं। महाभारत में इस प्रकार की कथा आती है कि अश्‍वत्थामा ने उत्‍तरा के गर्भ में स्थित भ्रूण को लक्षित किया तो श्री कृष्‍ण ने उसे पुन: जीवन दान दिया परन्‍तु उन्‍हीं श्री कृष्‍ण ने अपने प्रिय अर्जुन के पुत्र अभिमन्‍यु को जीवन दान नहीं दिया । अत: मृत्‍यु के लक्षण चिन्‍हों के प्रकट होने पर ज्‍योतिषीय आकलन के पश्‍चात् उचित निदान करना चाहिए।

अमित प्रजापति
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Saturday, September 5, 2009

स्‍नेह बंधन की पराकाष्‍ठा - श्राद्ध

जन्‍म प्राप्ति से मृत्‍यु तक माता-पिता का बच्‍चों के प्रति स्‍नेह उन्‍हें जीवन में पल-पल संघर्ष के प्रेरित करता है। माता-पिता का बच्‍चों के प्रति स्‍नेह ही बच्‍चों को अच्‍छी शिक्षा, सुखसुविधाओं के साधनों को इकट्ठा कर उन्‍हें ज्‍यादा से ज्‍यादा खुश देखने के लिए जीवन की दुष्‍वारियों से पार पाने की शक्ति देता है। माता-पिता तो अपने कर्तव्‍य का यथा शक्ति पालन कर इस दुनिया से विदा हो जाते हैं और जीवन की आपाधापी में वह समय कब आकर चला जाता है पता ही नहीं चलता और अक्‍सर उनके चले जाने के बाद ही बच्‍चों को अपने माता-पिता के अपने प्रति प्रेम का अहसास होता है।बच्‍चों का अपने माता-पिता दादा-दादी बल्कि और उनके भी पूर्वजों के प्रति अपने प्रेम, सम्‍मान और धन्‍यवाद् व्‍यक्‍त करने के धार्मिक स्‍वरूप को ही हम श्राद्ध के रूप में जानते हैं। सारे विश्‍व में अपने पूर्वजों के प्रति मनुष्‍य के ऐसे अनन्‍य प्रेम संबंधों को मृत्‍यु पर्यन्‍त भी निभाने की परम्‍परा एकमात्र भारतीय संस्‍कृति में ही देखने को मिलती है।
अक्‍सर श्राद्ध के विषय में सवाल मन में आता है कि मरे हुए जीव तो अपने कर्मानुसार शुभाशुभ गति को प्राप्‍त होते हैं; फिर श्राद्धकाल में ये अपने पुत्र के घर कैसे पहुँच जाते हैं। जो लोग यहॉं मरते हैं, उनमें से कितने ही इस लोक में जन्‍म ग्रहण करते हैं कितने ही पुण्‍यात्‍मा स्‍वर्गलोक में स्थित होते हैं और कितने ही पापात्‍मा जीव यमलोक के निवासी हो जाते हैं। यमलोक या स्‍वर्गलोक में रहने वाले पितरों को भी तब तक भूख प्‍यास अधिक होती है, जब तक कि वे माता पिता से तीन पीढ़ी के अन्‍तर्गत रहते हैं – जब तक वे श्राद्धकर्ता पुरुष के – मातामह, प्रमातामह या वृद्धप्रमातामह एवं पिता, पितामह या प्रपितामाह पद पर रहते हैं तबतक श्राद्धभाग ग्रहण करने के लिए उनमें भूख-प्‍यास की अधिकता रहती है।पितृलोक या देवलोक के पितर तो श्राद्धकाल में सूक्ष्‍म शरीर से आकर श्राद्धीय ब्राणों के शरीर मे स्थित होकर श्राद्धभाग ग्रहण करते हैं परंतु जो पितर कहीं शुभाशुभ भोग में स्थित हैं या जन्‍म ले चुके हैं, उनका भाग दिव्‍य पितर आकर ग्रहण करते हैं और जीव जहॉं जिस शरीर में होता है वहॉं तदनुकूल भोग की प्राप्ति कराकर उसे तृप्ति पहुँचातें हैं।
ये दिव्‍य पितर नित्‍य एवं सर्वज्ञ होते हैं। अग्निष्‍वात्‍त, बर्हिषद्, आज्‍यप, सोमप, रश्मिप, उपहूत, आयन्‍तुन, श्राद्धभुक तथा नान्‍दीमुख। आदित्‍य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनीकुमार भी केवल नान्‍दीमुख पितरों का छोड़कर शेष सभी को तृप्‍त करते हैं। ये पितृगण ब्रह्माजी के समान बताये गये हैं; अत पद्मयोनि ब्रह्माजी उन्‍हे तृप्‍त करने के पश्‍चात् सृष्टिकार्य प्रारंभ करते हैं।
इनके सिवा, दूसरे भी ऐसे मर्त्‍य – पितर होते हैं, जो स्‍वर्गलोक में निवास करते हैं। वे दो प्रकार के देखे जाते हैं; एक तो सुखी हैं और दूसरे दुखी। मर्त्‍यलोक में रहने वाले वंशज जिनके लिए जिनके लिए श्राद्ध करते हैं और दान देते हैं वे सभी हर्ष में भरकर दवताओं के समान प्रसन्‍न होते हैं। जिनके लिए उनके वंशज कुछ भी दान नहीं करते, वे भूख प्‍यास से व्‍याकुल और दुखी देखे जाते हैं। जब प्रमादी वंशज पितरों का तर्पण नहीं करते, तब उनके पितर स्‍वर्ग में रहने पर भी भूख प्‍यास से व्‍याकुल हो जाते हैं; फिर जो यमलोक में पड़े हैं, उनके कष्‍ट का तो कहना ही क्‍या है ?
यदि मनुष्‍य पिता, पितामह और प्रपितामह के उद्देश्‍य से तथा मातामह, प्रमातामह और वृद्धप्रमातामह के उद्देश्‍य से श्राद्ध तर्पण करेंगे तो उतने से ही उनके पिता और माता से लेकर दिव्‍य पितरों तक सभी पितर तृप्‍त हो जायेंगे। अमावस के दिन वंशजों द्वारा श्राद्ध और पिण्‍ड पाकर पितरों को एक मास तक तृप्ति बनी रहेगी । सूर्य देव के कन्‍या राशि पर स्थित रहते समय अश्विन कृष्‍ण पक्ष (पितृ पक्ष) में जो मनुष्‍य मृत्‍यु तिथियों पर पितरों के लिए श्राद्ध करेंगे, उनके उस श्राद्ध से पितरों को एक वर्ष तक तृप्ति बनी रहेगी। उस समय शाक के द्वारा भी जो मनुष्‍य श्राद्ध नहीं करता उसे कठिनाईयों जैसे संतान आभाव व धन आभाव आदि का सामना करना पड़ता है।यदि मनुष्‍य गया शीर्ष में जाकर एक बार भी श्राद्ध कर देंगे तो उसके प्रभाव से सभी पितर सदा के लिए तृप्‍त हो जाते हैं।
उत्‍तम कर्मों से उपार्जित धन से पितरों का श्राद्ध करना ही पुण्‍य लाभ दिलाता है। छल कपट चोरी और ठगी से कमाये हुए धन से कदापि श्राद्ध न करें। श्राद्ध श्रद्धा से किए जाएं तो पुण्‍य फल दायी होते हैं।श्राद्ध करते समय मन में पितरों को सद्गति, मोक्ष, आगे प्राप्‍त होने वाले जन्‍म में भगवद्भक्ति, प्रभु भक्ति व प्रेम संसकार, धर्मनिष्‍ठा जैसे उत्‍कृष्‍ठ भगवद् आर्शीवाद भगवान से पितरों को प्राप्‍त हों ऐसी कामना और प्रार्थना भी श्राद्ध कर्ता के मन में हों तो निसंदेह पितरों को शांति प्राप्‍त होती है, इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए। ऐसा कहा जाता है जिस कुल किसी एक मनुष्‍य को गुरू कृपा प्राप्‍त हो और वह गुरू से दीक्षित हो तो उस दीक्षा प्राप्‍त मनुष्‍य की अगली पिछली सात पीढ़ीयों का उद्धार होता है अत यह वर्णन करना अतयन्‍त प्रासांगिक है कि कर्मकाण्‍ड के साथ प्रभु शरण और भगवद् चरणों में पूर्ण समर्पण ही जीवन का मूल सार है।



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