वन्‍दे मातरम् !!!!






Sunday, August 23, 2009

ईश किरन्

शास्‍वत्ता,
बदलती रहती है वसन्,
और,
प्रकट होती रहती है,
निरन्‍तर, नये वेश में ।।

हम चमत्‍कृत हो जाते हैं,
नित् नये परिधान देखकर,
नित् नये आयाम् देखकर ।
हम् अभिभूत् हो उठते हैं,
आभा रश्मियों की अठ्खेलियों से ।।

हम खो जाते हैं, बदलते रंगों के
अलग-अलग भावों में ।
हम मनमोहित हो जाते हैं,
उतरती – चढ़ती कलाओं से ।
हम विस्मित् हो डूबे रहते हैं,
सौंदर्य में श्रृंगार में ।।

हमारी दृष्टि नहीं पहुँच नहीं पाती है,
इस आवरण के पार ।
जहॉं इस सारे संचलन का मूल है ।

काश,
हम समझ सकें,
उस शास्‍वत् ध्रुव के चारों ओर ही,
हर नया सृजन् है ।।

Monday, August 17, 2009

संत सुगंध

सन्त समर्पित करते तुमको, श्रद्धा सुमन हमारे।
तुमसे सीखा जीवन दर्शन, अहोभाग्य हमारे।।

सेवा, क्षमा, दया, धर्म, हैं जिनके जीवन का सिद्धांत।
उनके ह्रदय को दिया संबल, थे ऐसे संत ह्रदया राम।।

चीरा अंधियारे कलियुग को, दिया ज्ञान प्रकाश।
भोतिकवादी होती दुनिया को, फिर से सिखलाया राम नाम।।

जन सेवा की हिंद परम्परा की, झलक यहॉं दिखलाई।
संत ह्रदयाराम नगर में, आज भी संत सुगंध समाई।।

संत आज तुम काल प्रभाव से, हमसे दूर चले गए।
पर सच मानो जन की नम ऑंखों से, हर ह्रदय में बस गए।।

मुश्किल है अब तुम बिन जीना, डर लगता है हमको।
दो आशीष जीतें कलुषित मन, काटें अंतर तम को।।

संत ह्रदयाराम जी की स्‍मृति में मेरे गुरू श्री भालचंद्र जी सहस्‍त्रबुद्धे जी की प्रेरणा से सभी संत जनों के श्री चरणों में उन्‍हीं सभी संत जनों के आर्शीवाद से सप्रेम भेंट ।।

Sunday, August 16, 2009

चोरी और सीना जोरी

सोनिया जी,
एक अजीब सी उलझन में पड़ गईं ।
एक हिन्दी मुहावरे का अर्थ क्या है,
इस पचड़े में उलझ गईं।
कईं लोगों से पूछने पर भी,
अर्थ समझने की हर कोशिश बेकार गई ।
‘चोरी और सीना जोरी’
कहावत का अर्थ क्या होता है,
समझते समझते हार गईं ।

वामपंथियों को है अच्छा भाषा ज्ञान,
सोनिया जी को था यह भान ।
सोनिया जी की उलझन,
सुलझेगी, मिट जाएगी किलकिल ।
वामपंथियों के समर्थन से,
‘डील’ कर लेंगे, चाहे जो भी हो मुशिकल ।
कांग्रेसियों को थी उम्मीद,
फिर मन जाएगी बकरीद ।

परन्तु, वामपंथियों की फिसलन,
खड़ी कर गया नई उलझन ।
मामला सुलझेगा कैसे,
सोच में थे लालू प्रसाद लल्लन ।

तभी अचानक,
भूलकर अपने सब अपमान,
अमरसिंह को हो आया ज्ञान ।
जिनको कभी कहा करते थे विदेशी,
उन्हीं से बोले उलझन कैसी ।
इस संसार में भयंकर ‘माया’ जाल है,
और, माया पति की पत्नि ही,
इस समस्या का निकाल है।

४-५ दिन के अथक परिश्रम से,
व्यवस्था जमाई गई ।
लोकतंत्र की कीमत पर,
सरकार बचाई गई ।
परन्तु अभी मुख्य काम तो होना बाकी था,
सोनिया जी का सवाल ज्यों का त्यों था।


इसीलिए, अगले दिन,
उन सांसदों पर इल्जाम लगाए
जिन्होंने करोंड़ों पर लात मार कर,
कांग्रेसियों को थे आइने दिखलाए।
जिनका इमान वो करोंड़ों में नहीं खरीद पाए,
वो तीनों सांसद ही,
संसद की अवमानना के दोषी कहलाए।

अब सोनिया जी की टयूबलाइट जल चुकी थी,
अमर सिंह जी और लालू जी की बाछें खिल चुकीं थीं।

सोनिया जी बोलीं,
चोरी और सीना जोरी क्या होती है,
इसका मतलब तो बड़ा सीधा है,
और यह अर्थ अब मेरे साथ-साथ,
पूरे हिंदुस्तान को भी पता है।
ब्राण्‍डेड हुआ घर संसार

आज अगर हम कहें कि हमारा जीवन ब्राण्‍डेड हो गया है तो यह कोई अतिश्‍योक्ति नहीं होगी । विज्ञापन इस हद तक हमारे निर्णयों को प्रभावित करने लगें हैं कि हम विज्ञापन देखकर यह तय करते हैं कि हमें किस साबुन से नहाना है, कौन से ब्राण्‍ड का टूथपेस्ट लेना है, कौन सा नमक खाना है, किस ब्राण्‍ड की जीन्स-टी शर्ट लेना है, कौन सा जूता पहनना है और किस ब्राण्‍ड की मोटर साइकिल खरीदना है । सुबह उठ कर ऑंख खोलने से लेकर भागती दौड़ती दिनचर्या समाप्त कर रात को जिस बिस्तर पर आप सोते हैं वहॉं तक आप किस ब्राण्‍ड का उपयोग करें यह बताने के लिए एडवर्टाइज इण्‍डस्‍ट्री दिन रात कड़ी मेहनत करती है । यह इण्‍डस्‍ट्री गजब के प्रतिभाशाली लोगों की अथक मेहनत का नतीजा है।

क्रांतीकारी परिवर्तन:-
आधुनिक जीवन शैली ने सामाजिक जीवन के परिदृश्‍य को नए आयाम दिये हैं । आज न सिर्फ आम आदमी की जीवन शैली बदल चुकी है वरन् शिक्षा, चिकित्सा, यातायात,मनोरंजन एवं व्यापार आदि सभी क्षैञों में नए प्रयोग हो रहे हैं । जरूरत की वस्तुओं के आदान प्रदान से शुरू हुई व्यापारिक व्यवस्था आज टेली शॉपिंग, चेन मार्केटिंग, बिजनेस मॉल, होम डिलेवरी सिस्टम जैसे न जाने कितने प्रयोगों को आजमा चुकी हैं।
‘ब्राण्‍ड कॉन्‍सेप्‍ट’ भी इसी कड़ी का एक सफल प्रयोग है । किसी व्यापारिक उत्पाद की एडवर्टाइज कम्‍पनी द्वारा एक ऐसी इमेज तैयार की जाती है कि उस ब्राण्‍ड को अपनाना जन सामान्य के लिए सम्मान जनक स्टेटस सिम्बॉल समझा जाता है । सफलता के कई शिखरों को रचकर एडवर्टाइज इण्‍डस्‍ट्री आज सफलतम् उद्योगों में से एक है । आज इस प्रोफेशान में अपना कैरियर बनाना नाम, दाम और शोहरत् प्राप्त करने की गारंटी है ।
प्रताप बोस जो कि ओगिल्वी इंडिया के सी.ई.ओ. हैं कहते हैं कि, ‘‘पन्‍द्रह वर्ष पूर्व तक एडवर्टाइजिंग क्षैत्र को पूर्व निर्धरित उपेक्षापूर्ण नजरिए से देखा जाता था और एडवर्टाइजिंग क्षेत्र को केरियर के तौर पर अपनाने वाले लड़के-लड़कियों के बारे में सोचा जाता था कि वो सिर्फ मौज मस्ती और अपनी गैर जिम्मेदाराना सोच के चलते इस क्षेत्र में जा रहे हैं, पर अब ऐसा नहीं है ।’’
आज धारणा बदल चुकी है, लोगों का सोचना है कि एडवर्टाजिंग क्षेत्र में काम करने के लिए काम्पटेटिव व क्रियेटिव सोच, मनोवैज्ञानिक समझ, अच्छा भाषा ज्ञान, साहित्यिक दृप्टिकोण, संगीत की समझ, कम्प्यूटर टेक्नेलाजी के ज्ञान के साथ-साथ मार्केटिंग एवं बिजनेस की अच्छी समझ की भी आवश्‍यकता है, तभी विज्ञापनों को विकसित तथा जन-जन तक पहुँचा कर उत्पाद को लोकप्रयि बनाया जा सकता है ।
एड गुरू व लंदन इंस्टीट्यूट आफ कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन के वर्तमान चेयरमेन अलीक पद्मसी का कहना है,‘‘मेरा मानना है कि इण्डियन एड इण्‍डस्‍ट्री ने लोकल फ्‍लेवर का मिश्रण कर एक नया आयाम रच दिया है। हालांकि भारत में काम करने वाली ज्यादातर एजेंसियॉं विदेशी मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा संचालित हैं, पर इन एजेंसियों द्वारा तैयार किये जा रहे विज्ञापनों की गुणवत्ता श्रेप्ठतम् व ज्यादा कमर्शियल प्रभाव पैदा करने वाली है। कम्प्यूटर ग्राफिक्स ने एड फिल्म बनाने के परम्परागत तरीकों को बदल दिया है। अब नई तकनीकों के कारण विज्ञापनों में गुणवत्ता व चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता है।’’
आज भारतीय बाजार में अलग-अलग ब्राण्ड्स की भरमार है। इन ब्राण्ड्स के बारे में लोगों तक जानकारी पहुँचानेमें एडवर्टाइजिंग कम्पनियॉं ही मुख्य भूमिका निभाती हैं। आज के तेजी से बदलते और प्रतियोगी माहोल में आगे बने रहने के लिए किसी भी कम्पनी को ऐसे विशेषज्ञों की आवश्‍यकता होती है जो लोगों की जरूरतों और इच्छाओं को समझ कर बाजार में उपलब्ध अवसरों का फायदा उठा सकें। कम से कम लागत में तैयार उत्पाद को शीघ्र अति शीघ्र ग्राहकों का मन पसंद उत्पाद बना दें व उसे सफलतम् ब्राण्‍ड के रूप में स्थापित कर दें।
सुभाप कामद जो कि बेट्स डेविड इन्टरप्राइजेज के सी.ई.ओ. हैं का कहना है कि,‘‘एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री की सफलता अर्थव्यवस्था की सफलता की अनुगामी है। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था उन्नत होती है, ग्राहक की क्रय शक्ति बढ़ती है, नई-नई उपलब्धियों के लिए मार्ग प्रशस्त होता है और परिणामत: एडवर्टाइजिंग और ब्राण्ड्स अधिक विकसित और सशक्त होते जाते हैं।’’

अभी और भी मंजिलें हैं :-
भारत में एडवर्टाइजिंग के बदलते हुए माहोल में अभी अनंत संभावनाऍं नजर आती हैं। भारत में कन्ज्यूमर मार्केट अभी फलना फूलना शुरू हुआ है। ऐसे में अभी कई नए बदलाब,नई संभावनाऍं जन्म ले सकतीं हैं। जानकारों का मानना है अगले पन्‍द्रह सालों में भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री दुनिया की बड़ी एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्रीस में से एक होगी। अलीक पद्मसी का कहना है कि,‘‘ इस बढ़ती व्यापार व्यवस्था को सही दिशा देने के लिए कुछ नए स्पेशलाइज्डकोर्स शुरू करने की आवश्‍यकता है, खासकर उन युवाओं के लिए जो इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं।’’
क्रियेटिव डिपार्टर्मेंट, आइडिया मेकर,स्‍ट्रेटिजी प्लानिंग डिपार्टर्मेंट, ह्यूमन रिसोस डिपार्टर्मेंट व कोआडिनेटरस आदि नए स्पेशलाइज्ड फील्ड हैं जो नई एडवर्टाइज इण्‍डस्‍ट्री के महत्वपूर्ण विभाग हैं, जिन्हे स्पेशलाइज्ड लोग संभालते हैं। इन सब विभागों का कुछ समय पहले तक अस्तित्व नहीं था और आगे आने वाले समय में कई और नए स्पेशलाइज्ड विभागों की खोज होगी ताकि नई दिशाऍं तय की जा सकें।
प्रताप बोस कहते हैं, ‘‘आज तेजी से बदलती बाजार व्यवस्था और विभिन्न इण्स्ट्री के उत्पादों और उपभोक्ताओं की जरूरतों के तेजी से बदलते स्वरूपों के कारण इण्‍डस्‍ट्री मेनेजमेंट में निश्चित प्रकार की जाब व्यवस्था नहीं है।’’

लोकल फ्‍लेवर का तड़का :-
एक समय था जब भारतीय मीडिया में दिखाने के लिए कोई एड बनता था तो विदेशी एड का भारतीय भाषा में अनुवाद करके दिखा दिया जाता था। उसे भारतीय परिवेश से जोड़ने के लिए नई रचनात्मकता या तो थोड़ी बहुत या बिलकुल नहीं जोड़ी जाती थी। परन्तु नए क्रियेटिव हेड्स की पीढ़ी के काम में भारतीयता की झलक देखी जा सकती है। आज भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री न सिर्फ अपनी जड़ों को पहचान रही है बल्कि पारम्परिक व सामाजिक विचारधारा को अपनाकर उपभोक्ताओं से गहरा रिश्‍ता जोड़ चुकी है।
आज भारतीय एडवर्टाइज इण्स्ट्री अन्तराष्‍ट्रीय उत्पादों के लिए भी न सिर्फ एड तैयार कर रही है बल्कि रचनात्मकता की दृष्टि से अलग पहचान भी बना रही हैं। अत: भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री को ग्लोबल प्लेयर के रूप में देखा जाने लगा है। निर्भीक सिंह जो ग्रे एशिया पेसिफिक के चेयरमेन हैं कहते हैं कि, ‘‘अन्तराष्‍ट्रीय स्तर पर हमें काफी कुछ करना है पर अगले कुछ सालों में हम चाइनीज एडवर्टाइसिंग इण्‍डस्‍ट्री के समकक्ष होंगें।’’
सिर्फ अच्छे एड़ बना लेना या दूसरे देशों की एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री से प्रतिस्पर्धा करना ही कसौटी नहीं है बल्कि आप अपने विज्ञापनों के द्वारा लोगों को उस उत्पाद के साथ कितना जोड़ पाते हैं जिस उत्पाद के लिए वह विज्ञापन बना है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री इस बात को समझते हुए रचनात्मकता की भारतीय प्रतिभा का उपयोग करते हुए एक नई ॐचाई छूने को है। इस इण्‍डस्‍ट्री की सफलता नजर आने लगी है। अब देखना यह है कि यह सफलता हमें कहॉं ले जाती है ।
दिशाहीन नेतृत्व

आज सारी दुनिया के मन में एक बड़ा सवाल है कि आखिर आतंकवाद और इस्लाम में रिश्‍ता क्या है ? आज सारी दुनिया के लोगों के मन में शक क्यों है कि आम मुसलमान ;जो अलग-अलग देशों में नागरिक हैं और आम तौर पर सामाजिक जीवन जीते हैं आतंकवादियों से सहानुभूति रखते हैं । आज संसार में रहने वाले अन्य धर्मावलम्बियों को यह शक क्यों है कि इस्लाम उनके खिलाफ है। भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, चीन, रूस या अन्य कोई भी देश हर जगह मुसलमानों की सोच अलगाववादी क्यों है ?
पत्रकारिता के क्षेत्र में दुनिया की मानी हुई शाख्सीयत राबर्ट मर्डोक के कथन को अभी लोग भूले नहीं होंगे जिसमें उन्होंने दुनिया के अलग-अलग देशों में रह रहे मुसलमानों की राष्‍ट्रवादिता पर शक जाहिर किया था।
सवाल यह भी उठता है कि जब हर ऑंख इस्लाम को शक की दृष्टि से देख रही है, तो ऐसे में जो मुसलमानों के धार्मिक व राजनैतिक रहनुमा हैं वो क्या सोचते हैं ? ऐसे में जो मुस्लिम बुद्धीजीवी वर्ग है वो क्या सोचता है ? वो मुसलमान जो आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक दृष्टि से सम्पन्न हैं, जो प्रगतिवादी समझे जाते हैं, वो क्या विचार रखते हैं ? क्या इन प्रबुद्ध समझे जाने वाले, व धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक हैसियत रखने वाले मुसलमानों को इस्लाम की बिगड़ती छवि का थोड़ा भी मलाल है ? क्या इन इस्लामी प्रतिनिधियों को इस बात की थोड़ी भी परवाह है कि बाकी दुनिया के साथ इस्लामी दुनिया के रिश्‍ते इस हद तक भयावह हो गये हैं कि पूरी दुनिया एक जंग के मैदान में बदल गई है। अगर इन मस्लिम प्रतिनिधियों को इन सब बातों की थोड़ी भी चिंता है तो क्या वह कट्टरपंथियों का पुरजोर विरोध करना अपना कर्तव्‍य नहीं समझते। क्या इन प्रबुद्ध मुस्लिमों को यह नहीं लगता कि उनकी यह चुप्पी ही समस्त इस्लामी दुनिया को शक के दायरे में लाती है ? क्या उन्हें यह भी नहीं समझ में आता कि सारी दुनिया में फैलते इस नफरत के जहर का परिणाम सिर्फ गैर इस्लामी दुनिया को ही नहीं बल्कि मुसलमानों को ही ज्यादा भुगतना पड़ेगा ।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि मुस्लिम समाज पर उनके धार्मिक नेतृत्व की निरंकुश हुकूमत रही है। इस धार्मिक नैतृत्व ने मुसलमानों को न सिर्फ बाहरी दुनिया से संवाद करने व व्यवहार निभाने से रोका बल्कि मुसलमानों को बाकी दुनिया के खिलाफ कर दिया। बड़ेदुर्भाग्‍य की बात है कि इस्लाम के मानने वालों ने कभी समय की परवाह नहीं की। दुनिया के बाकी धर्मों ने जहॉं बदलते समय के साथ अपने रीति रिवाजों को बदलने में संकोच नहीं किया वहीं मुस्लिम समाज इस्लाम के जन्म के समय के रिवाजों को पकड़े खड़ा है। अपनी इसी कट्टरता के चलते मुसलमान समाज बाकी दुनिया से पिछड़ गया ।
विडम्बना यह भी है कि इन उलेमाओं, काजियों से आम मुसलमान तो खौफ खाता ही है, उच्‍चशिक्षित प्रगतिवादी समझे जाने वाला मुस्लिम बुद्धीजीवी भी इन धार्मिक आकाओं से भयभीत नजर आता है। जो जावेद अक्‍ख़तर आये दिन हिन्दू संगठनों को नई-नई सीख देते और हिंदुओं की कट्टरता को कोसते नहीं थकते, उन्हीं जावेद अक्‍ख़तर का गला तब सूख जाता है जब दिल्ली के शाही इमाम पूरे सूचना तंत्र के सामने शबाना आज़मी (जावेद अक्‍ख़तर की पत्नी) को ‘‘रण्डी’’ जैसे अपमान जनक शब्‍द से सम्बोधित करते हैं । शबाना आज़मी खुद जो स्पप्ट बोलने के लिए जानीं जातीं हैं और आये दिन हिन्दू संस्कृति में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए नए-नए विचार पेश करती नजर आती हैं, इतनी बड़ी गाली सुनने के बाद भी चुपचाप अपने घर में बैठ जातीं हैं।
राष्‍ट्रीय महिला आयोग व अन्य महिला संगठनों की भी चूं नहीं निकलती जबकि यही महिला संगठन वेलेन्टाइन डे पर बजरंग दल और विश्‍व हिंदू परिषद् से दो-दो हाथ करने के लिए अपने हाथों में लाठियॉं लेकर सड़कों पर घूमते नजर आते हैं ।
प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनबीर को हिंदू धर्म में तोकुरीतियॉं नजर आतीं हैं और वो ‘‘पोंगा पंडित’’ जैसे नाटकों को पूरी दुनिया में मंचन करते फिरते हैं पर उन्हें मुस्लिम समाज में फैली अशिक्षा, हलाला, एक पुरूप की चार-चार शादियॉं, मुस्लिम समाज में परिवारों की आर्थिक स्थिती ठीक न होने पर भी ज्यादा बच्चे पैदा करने की प्रवृत्ति, पोलियो उन्मूलन जैसे सामाजिक व राष्‍ट्रीय महत्व के कार्यों का अंधा विरोध जैसी कुरीतियॉं नजर नहीं आतीं ।
मकबूल फिदा हुसैन को अपनी रचनात्मकता दिखाने के लिए भी हिन्दूओं की आस्थाओं को ठेस पहॅचाना जरूरी नजर आता है और अगर हिन्दू विरोध में अपनी आवाज उठाते हैं तों हुसैन साहब को एक कलाकार की अभिव्यिक्त की स्वतंत्रता छिनती नजर आती है। मगर हुसैन साहब से कोई पूछे कि उनके स्वतंत्रता संबंधी यही विचार उस समय कहॉं चले गए थे जब मुसलमानों के आपत्ति करने पर उन्होंने अपनी फिल्म से एक गाना हटा लिया । मुस्लिम बुद्धीजीवियों के यह दोहरे पैमाने भी क्या मुस्लिम समाज के लिए उतने ही आत्मघाती नहीं है जितने तालिबानियों और मुजाहिदीनों के कारनामे आत्मघाती है, यह सवाल भी स्वयं मुसलमानों के लिए ही विचारणीय ज्यादा है।
अमेरिका के वर्ल्‍ड टेड सेंटर और ब्रिटेन की भूमिगत रेल में हुए बम हादसों की जांचों में यह साबित हो चुका है कि विस्फोटों साजिश की करनेवालों और विस्फोटों को अंजाम देने वाले आतंकी उच्च शिक्षा प्राप्त मुस्लिम युवा थें।
ऐसे हालातों में अगर अब भी मुसलमानी नेतृत्व अपनी नीतियों और रीतियों में बदलाव की जरूरत महसूस नहीं करता है तो आगे आने वाले समय में इस्लामी दुनिया को बाकी दुनिया के साथ और बाकी दुनिया से ज्यादा नुकसान उठाना होगा ।