वन्दे मातरम् !!!!
Friday, December 3, 2010
हमारी उड़ान
जीवन अनंत संभावनाओं का आकाश है ,
जीवन बहुरंगी रंगों का केन वास है ,
जीवन बहुआयामी विस्तार सा फैला है
हमारी कल्पनाओं के पंख हमें फड़फड़ाना है
हमें नित नये द्वार खट खटाने हैं
हमें जीना है जीवन उत्साह में उमंग में
हमें गिरना है, संभलना है, फिर आगे बढ़ना है
हम सभी रंगों के रंग में रंग जायेंगे
हम सभी संभावनाओं की अनंतता को पार कर जायेंगे
हम खंगाल डालेंगे विस्तृत आयामों को
और ये सब हम करेंगे खेल खेल में, हंस कर मुस्कुरा कर
तुतलाकर , छेड़ते हुए इक दूसरे को
और ये सब पलक झपकते हुए हो जायेगा , तुम देखना ......:))
Thursday, October 28, 2010
पड़ाव
देखता हूँ, जिधर भी
आता है नजर, जो भी
चाहे, वो जीवित हो, अजीवित हो
पत्थर हो, पहाड़ हो मनुष्य हो, पशु हो
धरती हो, अंतरिक्ष हो
या कुछ भी
एक व्यक्तित्व सा छलकता
नजर आता है ।
हर व्यक्तित्व का, अपना
एक निराला,
स्थाई भाव !
कुछ विशेष कथा सुनाता सा
कुछ भिन्न यात्रा संस्मरण सा कहता नजर आता है ।
यूँ तो सभी जीवित, अजीवित
तात्कालिक संदर्भों पर
प्रतिक्रिया प्रकट करते नजर आते हैं ।
कभी हंसी, मुस्कुराहट कभी
कभी रोष, असहमति भी
कभी व्यंग, कभी मौन
कभी नृत्य, गुनगुनाहट कभी
मानो !
व़ैश्विक परिवार के सदस्यों का संवाद हो ।
परन्तु, इन सभी व्यक्तित्वों
के संचारी भाव के पीछे स्थाई भाव अनवरत् है ।
यह स्थाई भाव !
हर एक के,
भिन्न भिन्न व्यक्तित्वों का
असामान्य सा निराला वयक्तित्व
व्यतीत किए गए
देश काल परिस्थितियों में
तय किए गए मार्गों में
उड़ने वाली धूल कणों से
धूप, वायु, वर्षा द्वारा
किया गया श्रृंगार ही तो है ।
याने, ये स्थाई भाव भी
लम्बे समय अंतराल की,
कृतिमताओं की परत दर परत ही हैं
जो अपनी बोझिलता से
स्थाई नजर आता है ।
अब या तो, हम, अपने बोझ ! की बोझिलता बढ़ाते जाऍं
या इस बोझ को छोड़कर
निर्मल, निर्लिप्त, सुगम
प्रभाह युक्त निर्भार, निराकार हो जाऍं ।
यह चयन, हम
पर ही तो निर्भर है ।
अमित प्रजापति
mo. +919981538208
190, चित्रांश भवन, राजीव नगर, विदिशा (म .प्र .)
पिन – 464001
Email – amitpraj@in.com
amitprajp@gmail.com
आता है नजर, जो भी
चाहे, वो जीवित हो, अजीवित हो
पत्थर हो, पहाड़ हो मनुष्य हो, पशु हो
धरती हो, अंतरिक्ष हो
या कुछ भी
एक व्यक्तित्व सा छलकता
नजर आता है ।
हर व्यक्तित्व का, अपना
एक निराला,
स्थाई भाव !
कुछ विशेष कथा सुनाता सा
कुछ भिन्न यात्रा संस्मरण सा कहता नजर आता है ।
यूँ तो सभी जीवित, अजीवित
तात्कालिक संदर्भों पर
प्रतिक्रिया प्रकट करते नजर आते हैं ।
कभी हंसी, मुस्कुराहट कभी
कभी रोष, असहमति भी
कभी व्यंग, कभी मौन
कभी नृत्य, गुनगुनाहट कभी
मानो !
व़ैश्विक परिवार के सदस्यों का संवाद हो ।
परन्तु, इन सभी व्यक्तित्वों
के संचारी भाव के पीछे स्थाई भाव अनवरत् है ।
यह स्थाई भाव !
हर एक के,
भिन्न भिन्न व्यक्तित्वों का
असामान्य सा निराला वयक्तित्व
व्यतीत किए गए
देश काल परिस्थितियों में
तय किए गए मार्गों में
उड़ने वाली धूल कणों से
धूप, वायु, वर्षा द्वारा
किया गया श्रृंगार ही तो है ।
याने, ये स्थाई भाव भी
लम्बे समय अंतराल की,
कृतिमताओं की परत दर परत ही हैं
जो अपनी बोझिलता से
स्थाई नजर आता है ।
अब या तो, हम, अपने बोझ ! की बोझिलता बढ़ाते जाऍं
या इस बोझ को छोड़कर
निर्मल, निर्लिप्त, सुगम
प्रभाह युक्त निर्भार, निराकार हो जाऍं ।
यह चयन, हम
पर ही तो निर्भर है ।
अमित प्रजापति
mo. +919981538208
190, चित्रांश भवन, राजीव नगर, विदिशा (म .प्र .)
पिन – 464001
Email – amitpraj@in.com
amitprajp@gmail.com
Sunday, February 7, 2010
विचारात्मक आतंकवाद
शाहरूख खान द्वारा IPL में पाकिस्तानी खिलाड़ियों की वकालत और उसके बाद अपने आप को सही ठहराये जाने की जिद यह दर्शाती है कि उन्हें भारत और भारतीयों के जख्मों से ज्यादा मतलब नहीं है । शिवसेना और बालठाकरे का शाहरुख खान मामले में प्रतिक्रिया का तरीका गलत हैयह बात भी अपनी जगह सही है पर इससे शाहरुख खान की गलती पर भी पर्दा नहीं पड़ सकता ।
भारत में आने वाली नकली करेंसी की बात हो, आतंकवादियों को प्रशिक्षण से लेकर आतंकवादी घटनाओं को क्रियांवित करने तक की पूरी प्रक्रिया में पाकिस्तानी संलिप्तता की बात हो, मुंबई स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग बम धमाका, 26/11 मुंबई बम धमाके और संसद पर हमला जैसे भारत की अर्थव्यस्था और स्वाभिमान को नष्ट करने की बात हो, इन सभी दुर्घटनाओं के बावजूद यदि कोई व्यक्ति पाकिस्तान और पाकिस्तानी खिलाड़ियों से इतनी शिद्दत से प्रेम दिखाए तो उसकी देशभक्ति संदेह के घेरे में आती है । भले ही वो शाहरुख हों, शशिथरुर हों या चिदम्बरम् हों । इस देश का दुर्भाग्य यह हो गया है कि देश में भ्रष्ट व्यक्तियों का कद इतना बड़ गया है कि वो अपने आप को देश से भी बड़ा समझने लगे हैं और वे अपने व्यक्तिगत् कद और उपलब्धियों में विस्तारके लिए अपनी घटिया, स्वार्थी और देशद्रोहात्मक सोच का क्रियान्व्यन और प्रदर्शन खुलेआम, बेशर्मी और ढ़ीठता से करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि आज आम भारतीय या भारत के प्रति प्रेम रखने वाला कोई भी भारतीय उन्हें नुकसान पहुँचाने की स्थिति में नहीं है । शाहरुख खान द्वारा IPL में पाकिस्तानी खिलाड़ियों की वकालत एक अलग मुद्दा है और शिवसेना की अलगाव वादी दादागिरी एक अलग समस्या पर इतनी सफाई के साथ एक पूरा तंत्र सिर्फ शिवसेना और बाल ठाकरे को दोषी ठहराकर शाहरूख खान को सहानुभूति दिलवाने में जुटा है, इससे यह पता चलता है कि भारत पर भारतियों की पकड़ कितनी ढ़ीली हो चुकी है ।
बॉलीबुड में एक पूरा वर्ग हमेशा से सक्रिय रहा है जो कला की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, मानव अधिकारों के नाम पर आतंकवादियों और पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति दर्शाता रहा है और देश के प्रति बलिदान देने वाली सेना और व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता रहा है । गुलजार की माचिस, शाहरुख की मैं हूँ ना, आमिर की फना जैसी कितनी ही फिल्मों में आतंकवादियों के मानवीय पहलू दिखाते हुए उनके प्रति संवेदनाऍं और सहानुभूति इकट्ठा करने की कोशिश की जाती है और पाकिस्तान और आतंकवादियों के प्रति कठोरता से पेश आने के दृष्टिकोण की निंदा की जाती है । आखिर किस तरह की सोच को हम अपने देश में लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर झेलते हुए देश की मर्यादा और सुरक्षा को चोट पहुँचाने वालों को बढ़ावा देते हैं । कल तक जो महेश भट्ट पाकिस्तान से अच्छे संबंधों की वकालत करते थे । पूरी दुनिया में कला के आदान प्रदान के लिए सिर्फ उन्हें पाकिस्तान ही नजर आता था । अब उनके बेटे का नाम 26/11 मुंबई बम धमाके के मुख्य आरोपी के साथ आता है तो वह अपने बेटे को सुरक्षा एजेंसियों की जॉंच पूरी होने के पहले ही प्रेस कांफ्रेंस बुला - बुलाकर निर्दोष होने की घोषणा करते नहीं थकते हैं । वहीं दूसरी ओर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलने वाली सरकार भी मामले में लीपा पोती करवाती है । बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग में हुए धमाकों में भी आरोपी आतंकवादियों के साथ संजय दत्त की लिप्तता सारे देश को पता है परन्तु जब भी संजय पर कानूनी कार्यवाही का शिकंजा कसाता है तो मीडिया में संजय दत्त के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा करने की कोशिश की जाती है ।
देश विदेश की जानी मानी लेखिका अरून्धती रॉय के लेख आए दिन बड़े बड़े पत्र पत्रिकाओं में छपते रहते हैं । जिनमें सेना के द्वारा कश्मीर में होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा उठाती रहतीं हैं और स्वतंत्र कश्मीर की मांग को समर्थन देती रहतीं हैं । कैसे उनके भारती विरोधी विचार बिना किसी बाधा के प्रकाशित होते रहते हैं ? यह देखने वाला तंत्र इस देश में नजर नहीं आता । इन तमाम भरत विरोधी विचारों के प्रसार को रोकने और प्रतिरोध करने का न तो समय भारत के बुद्धिजीवियों के पास हैऔर न ही उनमें ऐसी कोई इच्छा और इच्छा शक्ति नजर आती । इससे बड़ा और क्या देश का दुर्भाग्य होगा ?
जिस तरह से एक आतंकवादी विस्फोकों और हथयारों से देश की जनता, धन-संपत्ति, सुरक्षा स्वाभिमान और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाते हैं उसी तरह से बल्कि कहना चहिए उससे भी ज्यादा शाहरूख, संजय और अरुन्धती रॉय जैसे लोग ग्लेमर कला और साहित्य की चाशनी में लपेट कर प्रत्यक्ष आतंकवाद से भी ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं और देश की जड़ों को दीमक की तरह भीतर ही भीतर धीमे धीमे खोखला करते हैं । आतंकवादी तो फिर एक बार सेना और सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर आ जाते हैं पर जब तक कलात्मक, संस्कृतिक साहित्यिक और ऱाजनेतिक आतंकवादियों को निशान पर नहीं लिया जाता देश की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगती रहेगी इसके लिए पहले तो आम भारतवासियों को जागरूक व सक्रिय होना होगा ।
भारत में आने वाली नकली करेंसी की बात हो, आतंकवादियों को प्रशिक्षण से लेकर आतंकवादी घटनाओं को क्रियांवित करने तक की पूरी प्रक्रिया में पाकिस्तानी संलिप्तता की बात हो, मुंबई स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग बम धमाका, 26/11 मुंबई बम धमाके और संसद पर हमला जैसे भारत की अर्थव्यस्था और स्वाभिमान को नष्ट करने की बात हो, इन सभी दुर्घटनाओं के बावजूद यदि कोई व्यक्ति पाकिस्तान और पाकिस्तानी खिलाड़ियों से इतनी शिद्दत से प्रेम दिखाए तो उसकी देशभक्ति संदेह के घेरे में आती है । भले ही वो शाहरुख हों, शशिथरुर हों या चिदम्बरम् हों । इस देश का दुर्भाग्य यह हो गया है कि देश में भ्रष्ट व्यक्तियों का कद इतना बड़ गया है कि वो अपने आप को देश से भी बड़ा समझने लगे हैं और वे अपने व्यक्तिगत् कद और उपलब्धियों में विस्तारके लिए अपनी घटिया, स्वार्थी और देशद्रोहात्मक सोच का क्रियान्व्यन और प्रदर्शन खुलेआम, बेशर्मी और ढ़ीठता से करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि आज आम भारतीय या भारत के प्रति प्रेम रखने वाला कोई भी भारतीय उन्हें नुकसान पहुँचाने की स्थिति में नहीं है । शाहरुख खान द्वारा IPL में पाकिस्तानी खिलाड़ियों की वकालत एक अलग मुद्दा है और शिवसेना की अलगाव वादी दादागिरी एक अलग समस्या पर इतनी सफाई के साथ एक पूरा तंत्र सिर्फ शिवसेना और बाल ठाकरे को दोषी ठहराकर शाहरूख खान को सहानुभूति दिलवाने में जुटा है, इससे यह पता चलता है कि भारत पर भारतियों की पकड़ कितनी ढ़ीली हो चुकी है ।
बॉलीबुड में एक पूरा वर्ग हमेशा से सक्रिय रहा है जो कला की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी, मानव अधिकारों के नाम पर आतंकवादियों और पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति दर्शाता रहा है और देश के प्रति बलिदान देने वाली सेना और व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करता रहा है । गुलजार की माचिस, शाहरुख की मैं हूँ ना, आमिर की फना जैसी कितनी ही फिल्मों में आतंकवादियों के मानवीय पहलू दिखाते हुए उनके प्रति संवेदनाऍं और सहानुभूति इकट्ठा करने की कोशिश की जाती है और पाकिस्तान और आतंकवादियों के प्रति कठोरता से पेश आने के दृष्टिकोण की निंदा की जाती है । आखिर किस तरह की सोच को हम अपने देश में लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर झेलते हुए देश की मर्यादा और सुरक्षा को चोट पहुँचाने वालों को बढ़ावा देते हैं । कल तक जो महेश भट्ट पाकिस्तान से अच्छे संबंधों की वकालत करते थे । पूरी दुनिया में कला के आदान प्रदान के लिए सिर्फ उन्हें पाकिस्तान ही नजर आता था । अब उनके बेटे का नाम 26/11 मुंबई बम धमाके के मुख्य आरोपी के साथ आता है तो वह अपने बेटे को सुरक्षा एजेंसियों की जॉंच पूरी होने के पहले ही प्रेस कांफ्रेंस बुला - बुलाकर निर्दोष होने की घोषणा करते नहीं थकते हैं । वहीं दूसरी ओर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलने वाली सरकार भी मामले में लीपा पोती करवाती है । बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज बिल्डिंग में हुए धमाकों में भी आरोपी आतंकवादियों के साथ संजय दत्त की लिप्तता सारे देश को पता है परन्तु जब भी संजय पर कानूनी कार्यवाही का शिकंजा कसाता है तो मीडिया में संजय दत्त के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा करने की कोशिश की जाती है ।
देश विदेश की जानी मानी लेखिका अरून्धती रॉय के लेख आए दिन बड़े बड़े पत्र पत्रिकाओं में छपते रहते हैं । जिनमें सेना के द्वारा कश्मीर में होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन का मुद्दा उठाती रहतीं हैं और स्वतंत्र कश्मीर की मांग को समर्थन देती रहतीं हैं । कैसे उनके भारती विरोधी विचार बिना किसी बाधा के प्रकाशित होते रहते हैं ? यह देखने वाला तंत्र इस देश में नजर नहीं आता । इन तमाम भरत विरोधी विचारों के प्रसार को रोकने और प्रतिरोध करने का न तो समय भारत के बुद्धिजीवियों के पास हैऔर न ही उनमें ऐसी कोई इच्छा और इच्छा शक्ति नजर आती । इससे बड़ा और क्या देश का दुर्भाग्य होगा ?
जिस तरह से एक आतंकवादी विस्फोकों और हथयारों से देश की जनता, धन-संपत्ति, सुरक्षा स्वाभिमान और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाते हैं उसी तरह से बल्कि कहना चहिए उससे भी ज्यादा शाहरूख, संजय और अरुन्धती रॉय जैसे लोग ग्लेमर कला और साहित्य की चाशनी में लपेट कर प्रत्यक्ष आतंकवाद से भी ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं और देश की जड़ों को दीमक की तरह भीतर ही भीतर धीमे धीमे खोखला करते हैं । आतंकवादी तो फिर एक बार सेना और सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर आ जाते हैं पर जब तक कलात्मक, संस्कृतिक साहित्यिक और ऱाजनेतिक आतंकवादियों को निशान पर नहीं लिया जाता देश की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगती रहेगी इसके लिए पहले तो आम भारतवासियों को जागरूक व सक्रिय होना होगा ।
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