सन्त समर्पित करते तुमको, श्रद्धा सुमन हमारे।
तुमसे सीखा जीवन दर्शन, अहोभाग्य हमारे।।
सेवा, क्षमा, दया, धर्म, हैं जिनके जीवन का सिद्धांत।
उनके ह्रदय को दिया संबल, थे ऐसे संत ह्रदया राम।।
चीरा अंधियारे कलियुग को, दिया ज्ञान प्रकाश।
भोतिकवादी होती दुनिया को, फिर से सिखलाया राम नाम।।
जन सेवा की हिंद परम्परा की, झलक यहॉं दिखलाई।
संत ह्रदयाराम नगर में, आज भी संत सुगंध समाई।।
संत आज तुम काल प्रभाव से, हमसे दूर चले गए।
पर सच मानो जन की नम ऑंखों से, हर ह्रदय में बस गए।।
मुश्किल है अब तुम बिन जीना, डर लगता है हमको।
दो आशीष जीतें कलुषित मन, काटें अंतर तम को।।
संत ह्रदयाराम जी की स्मृति में मेरे गुरू श्री भालचंद्र जी सहस्त्रबुद्धे जी की प्रेरणा से सभी संत जनों के श्री चरणों में उन्हीं सभी संत जनों के आर्शीवाद से सप्रेम भेंट ।।
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