वन्‍दे मातरम् !!!!






Sunday, August 16, 2009

ब्राण्‍डेड हुआ घर संसार

आज अगर हम कहें कि हमारा जीवन ब्राण्‍डेड हो गया है तो यह कोई अतिश्‍योक्ति नहीं होगी । विज्ञापन इस हद तक हमारे निर्णयों को प्रभावित करने लगें हैं कि हम विज्ञापन देखकर यह तय करते हैं कि हमें किस साबुन से नहाना है, कौन से ब्राण्‍ड का टूथपेस्ट लेना है, कौन सा नमक खाना है, किस ब्राण्‍ड की जीन्स-टी शर्ट लेना है, कौन सा जूता पहनना है और किस ब्राण्‍ड की मोटर साइकिल खरीदना है । सुबह उठ कर ऑंख खोलने से लेकर भागती दौड़ती दिनचर्या समाप्त कर रात को जिस बिस्तर पर आप सोते हैं वहॉं तक आप किस ब्राण्‍ड का उपयोग करें यह बताने के लिए एडवर्टाइज इण्‍डस्‍ट्री दिन रात कड़ी मेहनत करती है । यह इण्‍डस्‍ट्री गजब के प्रतिभाशाली लोगों की अथक मेहनत का नतीजा है।

क्रांतीकारी परिवर्तन:-
आधुनिक जीवन शैली ने सामाजिक जीवन के परिदृश्‍य को नए आयाम दिये हैं । आज न सिर्फ आम आदमी की जीवन शैली बदल चुकी है वरन् शिक्षा, चिकित्सा, यातायात,मनोरंजन एवं व्यापार आदि सभी क्षैञों में नए प्रयोग हो रहे हैं । जरूरत की वस्तुओं के आदान प्रदान से शुरू हुई व्यापारिक व्यवस्था आज टेली शॉपिंग, चेन मार्केटिंग, बिजनेस मॉल, होम डिलेवरी सिस्टम जैसे न जाने कितने प्रयोगों को आजमा चुकी हैं।
‘ब्राण्‍ड कॉन्‍सेप्‍ट’ भी इसी कड़ी का एक सफल प्रयोग है । किसी व्यापारिक उत्पाद की एडवर्टाइज कम्‍पनी द्वारा एक ऐसी इमेज तैयार की जाती है कि उस ब्राण्‍ड को अपनाना जन सामान्य के लिए सम्मान जनक स्टेटस सिम्बॉल समझा जाता है । सफलता के कई शिखरों को रचकर एडवर्टाइज इण्‍डस्‍ट्री आज सफलतम् उद्योगों में से एक है । आज इस प्रोफेशान में अपना कैरियर बनाना नाम, दाम और शोहरत् प्राप्त करने की गारंटी है ।
प्रताप बोस जो कि ओगिल्वी इंडिया के सी.ई.ओ. हैं कहते हैं कि, ‘‘पन्‍द्रह वर्ष पूर्व तक एडवर्टाइजिंग क्षैत्र को पूर्व निर्धरित उपेक्षापूर्ण नजरिए से देखा जाता था और एडवर्टाइजिंग क्षेत्र को केरियर के तौर पर अपनाने वाले लड़के-लड़कियों के बारे में सोचा जाता था कि वो सिर्फ मौज मस्ती और अपनी गैर जिम्मेदाराना सोच के चलते इस क्षेत्र में जा रहे हैं, पर अब ऐसा नहीं है ।’’
आज धारणा बदल चुकी है, लोगों का सोचना है कि एडवर्टाजिंग क्षेत्र में काम करने के लिए काम्पटेटिव व क्रियेटिव सोच, मनोवैज्ञानिक समझ, अच्छा भाषा ज्ञान, साहित्यिक दृप्टिकोण, संगीत की समझ, कम्प्यूटर टेक्नेलाजी के ज्ञान के साथ-साथ मार्केटिंग एवं बिजनेस की अच्छी समझ की भी आवश्‍यकता है, तभी विज्ञापनों को विकसित तथा जन-जन तक पहुँचा कर उत्पाद को लोकप्रयि बनाया जा सकता है ।
एड गुरू व लंदन इंस्टीट्यूट आफ कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन के वर्तमान चेयरमेन अलीक पद्मसी का कहना है,‘‘मेरा मानना है कि इण्डियन एड इण्‍डस्‍ट्री ने लोकल फ्‍लेवर का मिश्रण कर एक नया आयाम रच दिया है। हालांकि भारत में काम करने वाली ज्यादातर एजेंसियॉं विदेशी मल्टीनेशनल कम्पनियों द्वारा संचालित हैं, पर इन एजेंसियों द्वारा तैयार किये जा रहे विज्ञापनों की गुणवत्ता श्रेप्ठतम् व ज्यादा कमर्शियल प्रभाव पैदा करने वाली है। कम्प्यूटर ग्राफिक्स ने एड फिल्म बनाने के परम्परागत तरीकों को बदल दिया है। अब नई तकनीकों के कारण विज्ञापनों में गुणवत्ता व चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता है।’’
आज भारतीय बाजार में अलग-अलग ब्राण्ड्स की भरमार है। इन ब्राण्ड्स के बारे में लोगों तक जानकारी पहुँचानेमें एडवर्टाइजिंग कम्पनियॉं ही मुख्य भूमिका निभाती हैं। आज के तेजी से बदलते और प्रतियोगी माहोल में आगे बने रहने के लिए किसी भी कम्पनी को ऐसे विशेषज्ञों की आवश्‍यकता होती है जो लोगों की जरूरतों और इच्छाओं को समझ कर बाजार में उपलब्ध अवसरों का फायदा उठा सकें। कम से कम लागत में तैयार उत्पाद को शीघ्र अति शीघ्र ग्राहकों का मन पसंद उत्पाद बना दें व उसे सफलतम् ब्राण्‍ड के रूप में स्थापित कर दें।
सुभाप कामद जो कि बेट्स डेविड इन्टरप्राइजेज के सी.ई.ओ. हैं का कहना है कि,‘‘एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री की सफलता अर्थव्यवस्था की सफलता की अनुगामी है। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था उन्नत होती है, ग्राहक की क्रय शक्ति बढ़ती है, नई-नई उपलब्धियों के लिए मार्ग प्रशस्त होता है और परिणामत: एडवर्टाइजिंग और ब्राण्ड्स अधिक विकसित और सशक्त होते जाते हैं।’’

अभी और भी मंजिलें हैं :-
भारत में एडवर्टाइजिंग के बदलते हुए माहोल में अभी अनंत संभावनाऍं नजर आती हैं। भारत में कन्ज्यूमर मार्केट अभी फलना फूलना शुरू हुआ है। ऐसे में अभी कई नए बदलाब,नई संभावनाऍं जन्म ले सकतीं हैं। जानकारों का मानना है अगले पन्‍द्रह सालों में भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री दुनिया की बड़ी एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्रीस में से एक होगी। अलीक पद्मसी का कहना है कि,‘‘ इस बढ़ती व्यापार व्यवस्था को सही दिशा देने के लिए कुछ नए स्पेशलाइज्डकोर्स शुरू करने की आवश्‍यकता है, खासकर उन युवाओं के लिए जो इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते हैं।’’
क्रियेटिव डिपार्टर्मेंट, आइडिया मेकर,स्‍ट्रेटिजी प्लानिंग डिपार्टर्मेंट, ह्यूमन रिसोस डिपार्टर्मेंट व कोआडिनेटरस आदि नए स्पेशलाइज्ड फील्ड हैं जो नई एडवर्टाइज इण्‍डस्‍ट्री के महत्वपूर्ण विभाग हैं, जिन्हे स्पेशलाइज्ड लोग संभालते हैं। इन सब विभागों का कुछ समय पहले तक अस्तित्व नहीं था और आगे आने वाले समय में कई और नए स्पेशलाइज्ड विभागों की खोज होगी ताकि नई दिशाऍं तय की जा सकें।
प्रताप बोस कहते हैं, ‘‘आज तेजी से बदलती बाजार व्यवस्था और विभिन्न इण्स्ट्री के उत्पादों और उपभोक्ताओं की जरूरतों के तेजी से बदलते स्वरूपों के कारण इण्‍डस्‍ट्री मेनेजमेंट में निश्चित प्रकार की जाब व्यवस्था नहीं है।’’

लोकल फ्‍लेवर का तड़का :-
एक समय था जब भारतीय मीडिया में दिखाने के लिए कोई एड बनता था तो विदेशी एड का भारतीय भाषा में अनुवाद करके दिखा दिया जाता था। उसे भारतीय परिवेश से जोड़ने के लिए नई रचनात्मकता या तो थोड़ी बहुत या बिलकुल नहीं जोड़ी जाती थी। परन्तु नए क्रियेटिव हेड्स की पीढ़ी के काम में भारतीयता की झलक देखी जा सकती है। आज भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री न सिर्फ अपनी जड़ों को पहचान रही है बल्कि पारम्परिक व सामाजिक विचारधारा को अपनाकर उपभोक्ताओं से गहरा रिश्‍ता जोड़ चुकी है।
आज भारतीय एडवर्टाइज इण्स्ट्री अन्तराष्‍ट्रीय उत्पादों के लिए भी न सिर्फ एड तैयार कर रही है बल्कि रचनात्मकता की दृष्टि से अलग पहचान भी बना रही हैं। अत: भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री को ग्लोबल प्लेयर के रूप में देखा जाने लगा है। निर्भीक सिंह जो ग्रे एशिया पेसिफिक के चेयरमेन हैं कहते हैं कि, ‘‘अन्तराष्‍ट्रीय स्तर पर हमें काफी कुछ करना है पर अगले कुछ सालों में हम चाइनीज एडवर्टाइसिंग इण्‍डस्‍ट्री के समकक्ष होंगें।’’
सिर्फ अच्छे एड़ बना लेना या दूसरे देशों की एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री से प्रतिस्पर्धा करना ही कसौटी नहीं है बल्कि आप अपने विज्ञापनों के द्वारा लोगों को उस उत्पाद के साथ कितना जोड़ पाते हैं जिस उत्पाद के लिए वह विज्ञापन बना है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारतीय एडवर्टाइजिंग इण्‍डस्‍ट्री इस बात को समझते हुए रचनात्मकता की भारतीय प्रतिभा का उपयोग करते हुए एक नई ॐचाई छूने को है। इस इण्‍डस्‍ट्री की सफलता नजर आने लगी है। अब देखना यह है कि यह सफलता हमें कहॉं ले जाती है ।

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